Wednesday, November 14, 2018

सरकारी समारोहों में आमंत्रण पर क्या कहता है प्रोटोकॉल?

बीते कुछ वक़्त में मनोज तिवारी कुछ बयानों की वजह से भले ही विरोधियों को मृदुलभाषी न लगते हों, लेकिन उनके नाम में 23 साल से मृदुल जुड़ा हुआ है.
इसकी वजह ये है कि मनोज तिवारी जब नेता होते हैं तो वो मृदुल नहीं रहते हैं. मनोज तिवारी बताते हैं, ''मेरे सिर्फ़ गायिकी से जुड़े कामों में मृदुल उपनाम का इस्तेमाल होता है.'' हालांकि फ़ेसबुक पर उनके नाम के साथ मृदुल लिखा हुआ है.
मनोज तिवारी के नाम में मृदुल जुड़ने की कहानी साल 1996 और गुलशन कुमार से जुड़ी है.
मनोज तिवारी ने कहा, ''मेरा पहला एल्बम 'बाड़ी शेर पर सवार' और 'मैया की महिमा' 1996 में आया था. ये भजनों का संग्रह था. तब गुलशन कुमार ने मुझे ये नाम दिया था. तब से मेरी एल्बम में मनोज तिवारी 'मृदुल' लिखा जाने लगा.''
सिंगिंग से मनोज तिवारी एक्टिंग की ओर बढ़ते हैं. मनोज तिवारी की वेबसाइट के मुताबिक़, साल 2003 में मनोज की फ़िल्म 'ससुरा बड़ा पइसावाला' आती है. ये फ़िल्म यूपी, बिहार में अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय की 'बंटी बबली' से ज़्यादा कमाई करती है.
ये पहला मौक़ा था जब मनोज तिवारी पर्दे पर नज़र आ रहे थे.
मनोज बताते हैं, ''सुधाकर पांडे और अजय सिन्हा ने मुझे पहला मौका दिया था. तब भोजपुरी सिनेमा काफ़ी अलग था. मुझे ख़ास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन उन लोगों ने कहा तो मैंने कर लिया. नतीजे में सफलता हाथ लगी.''
मनोज की पढ़ाई बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हुई. 1992 में मनोज ने बीए की पढ़ाई की थी.
हाल ही में मनोज तिवारी के दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौक़े पर हाथापाई के वीडियो वायरल हुए थे.
इन वीडियोज़ में से एक में आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह ख़ान मनोज तिवारी को धक्का देते और एक वीडियो में मनोज पुलिसवालों संग धक्कामुक्की करते नज़र आते हैं.
वैसे मनोज तिवारी ने बनारस से 1994 में मास्टर ऑफ फ़िजिकल एजुकेशन की डिग्री हासिल की है.फेद रंग की सैंडो बनियान. माथे पर लाल गमछा. आस-पास तबले और संगीत साज़.
'चट देनी मार देली खींच के तमाचा...हीही-हीही-हीही हँस देले रिंकिया के पापा'
मनोज तिवारी अपने गानों की वजह से भी चर्चा में रहे हैं. इनमें से एक गाना है रिंकिया के पापा. लेकिन असल में रिंकिया के पापा कौन हैं?
मनोज तिवारी हँसते हुए बताते हैं, ''मुझे नहीं मालूम कि रिंकिया के पापा कौन हैं. ये गाना मैंने कल्पना में ही लिखा था. आजकल परंपरा है कि लोग रिंकी, मुन्नी, पिंकी जैसे नाम रख लेते हैं, ऐसे ही कहने में अच्छा लग रहा था तो मैंने रख लिया. किसी को सोचकर ये गाना नहीं लिखा था.''
इसी गाने में चट से खींच के तमाचा मारने की भी एक लाइन आती है. पर क्या मनोज तिवारी ने कभी किसी को खींच के तमाचा मारा है?
मनोज कहते हैं, ''नहीं नहीं कभी नहीं. मैं बहुत शांत स्वभाव का व्यक्ति हूं. चांटा लगने के बाद जो चट की आवाज़ आती है, मैंने बस उसकी कल्पना की थी. मुझे भी ये अंदाज़ा नहीं था कि ये गाना हिट हो जाएगा. न तो मैंने किसी को मारा है चट से और न ही किसी ने गाल पर मुझे चट से मारा है. हां कुछ लोगों ने मुझे ज़रूर तकलीफ देने की कोशिश की है. आप लोगों ने देखा ही होगा अभी...मैंने न कभी किसी को थप्पड़ मारने की सोची है और न सोचूंगा.''
मनोज तिवारी बतौर लेखक किन बातों का ध्यान रखते हैं? वो कहते हैं, ''जो बोलचाल की भाषा है. मैं उसे ही गीतों में लगाने की कोशिश करता हूं. समाज में जो चल रहा होता है, उसे ही गानों में पिरोने की कोशिश करता हूं.''
मनोज तिवारी जल्द ही 'आख़िरी पलायन' नाम की एक फ़िल्म लाने की कोशिश करेंगे. मनोज की ये फ़िल्म फ़रवरी तक आ सकती है.

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